SATURDAY, NOVEMBER 7, 2009
रेलवे व बस टिकिट चैकरों को उम्रकैद!
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
मैं जो कुछ लिख रहा हँू, वह कोई नयी बात नहीं है, लेकिन मैं फिर भी इसमें कुछ नयी एवं कानूनी जानकारी देने का प्रयास कर रहा हँू। कृपया इसे पढें अवश्य।
एक सज्जन का कहना है कि रेलवे में टिकिट चैकर टिकिट नहीं देते। यात्रियों से रुपये लेकर रसीद भी नहीं देते और प्रतिदिन सैकडों यात्रियों को मुफ्त में यात्रा करवाकर सारा धन अपनी जेब में रख लेते हैं। उनका यह भी कहना है कि ऐसा नहीं है कि रेलवे के उच्च अधिकारियों को इसका पता नहीं हो। वे दुःख व्यक्त करते हुए आगे कहते हैं कि रेलवे मन्त्री को शिकायत करना चाहता हूँ, लेकिन उनका कोई ई-मेल पता ही नहीं है।
इस प्रकार की शिकायत हममें से बहुतों की हो सकती है। रेल में यात्रा करने वालों को इस प्रकार के अनुभव से अनेकों बार गुजरना पडता है, लेकिन हम चुपचाप इसे स्वीकार कर लेते हैं। इनके खिलाफ बातें अवश्य करते हैं, लेकिन कानूनी कार्यवाही करने हेतु कोई कदम नहीं उठाते। परिणामस्वरूप ऐसे अपराध दिनोंदिन बढते जा रहे हैं।
मैं उक्त समस्या को समाधान तक ले जाने के लिये कुछ तथ्य सर्वसाधारण के सामने रखना चाहता हूँ। रेलवे के अफसरों को टिकिट चैकरों की कारगुजारियों का पता है या नहीं, केवल इससे काम नहीं चलेगा। हर विभाग का हर अफसर जानता है कि ऊपर एवं नीचे कहाँ-कहाँ क्या-क्या चल रहा है। इसी प्रकार से हर रेलवे अफसर भी जानता है कि कहाँ क्या चल रहा है। रेल मन्त्री जी भी इस बात को अवश्य ही जानती ही होंगी। लेकिन सबसे बडा सवाल तो ये है कि इस प्रकार के अपराध के लिये रेल मन्त्री को शिकायत करने से भी क्या हासिल होगा, क्योंकि शायद अनेकों को ज्ञात ही नहीं होगा कि टिकिट चैकर द्वारा पैसा लेकर टिकिट नहीं देना या रसीद नहीं देना, इतना छोटा अपराध नहीं है कि रेले मन्त्री जैसे छोटे स्तर पर इसकी कानूनी सजा दी जा सके, बल्कि यह बहुत बडा एवं गम्भीर अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 409 में इसे अमानत में खायानत का अपराध माना गया है। जिसे कानूनी भाषा में लोक सेवक द्वारा किये जाने वाले आपराधिक न्यास भंग के अपराध की संज्ञा दी गयी है। इस धारा के तहत इस अपराधी के लिये आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है। केवल रेलवे में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक राज्य की रोडवेज की बसों में भी कण्डक्टर्स के द्वारा भी यात्रियों से किराया लेकर टिकिट नहीं देना भी ऐसा ही अपराध है और सजा भी समान है। लेकिन क्या हममें से किसी ने कभी सुना है कि किसी रेलवे के टिकिट चैकर या रोडवेज के कण्डक्टर को किकिट नहीं देकर जेब में पैसा रख लेने के अपराध में आजीवन कारावास की या कोई छोटे कारारवास की सजा भी हुई हो?
हालात ऐसे ही रहे तो कारावास की सजा कभी होगी भी नहीं! क्योंकि रेलवे या रोडवेज के प्रबन्धन द्वारा तो इस अपराध की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज की नहीं जायेगी। पुलिस खुद लिखने से रही, क्योंकि पुलिस वाले तो खुद ही रेल एवं बसों में मुफ्त (फ्री) में यात्रा करते रहते हैं। ऐसे हालात में आप-हममें से ही कुछ लोगों को प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के रूप में इस प्रकार के अपराध को रोकने के लिये रेलवे के मामले में जीआरपी (पुलिस थाने) में एवं रोडवेज के मामले में सम्बन्धित क्षेत्र के पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करवाना होगा। हालांकि किसी एक व्यक्ति के लिये यह आसान काम नहीं है। जो लोग ऐसा सोचते हैं कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जानी चाहिये। वे स्वयं अनुभव करके देख सकते हैं। पर्याप्त सबूत एवं साक्ष्य उपलब्ध करवाने के बावजूद भी पहली नजर में पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करने के लिये जी-जान लगा देगी। लेकिन फिर भी मैं यही कहूँगा कि असम्भव कुछ भी नहीं है।किसी एक रेलवे के टिकिट चैकर या रोडवेज के कण्डक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दो, फिर देखो क्या होता है।
रेल मन्त्री या राज्य के यातायात मन्त्री को शिकायत करने से कुछ नहीं होने वाला। क्योंकि रेल मन्त्री क्या, हम यदि राष्ट्रपति को भी लिखेंगे तो भी उसकी जाँच वे ही अफसर करेंगे, जिनके चरित्र के बारे में हम सब जानते हैं। प्रशासनिक व्यवस्था की यह बहुत बडी खामी है। इन अफसरों के द्वारा अपने कर्त्तव्यों का पालन किया गया होता तो देश की वर्तमान दुर्दशा नहीं होती!
एक सज्जन का कहना है कि रेलवे में टिकिट चैकर टिकिट नहीं देते। यात्रियों से रुपये लेकर रसीद भी नहीं देते और प्रतिदिन सैकडों यात्रियों को मुफ्त में यात्रा करवाकर सारा धन अपनी जेब में रख लेते हैं। उनका यह भी कहना है कि ऐसा नहीं है कि रेलवे के उच्च अधिकारियों को इसका पता नहीं हो। वे दुःख व्यक्त करते हुए आगे कहते हैं कि रेलवे मन्त्री को शिकायत करना चाहता हूँ, लेकिन उनका कोई ई-मेल पता ही नहीं है।
इस प्रकार की शिकायत हममें से बहुतों की हो सकती है। रेल में यात्रा करने वालों को इस प्रकार के अनुभव से अनेकों बार गुजरना पडता है, लेकिन हम चुपचाप इसे स्वीकार कर लेते हैं। इनके खिलाफ बातें अवश्य करते हैं, लेकिन कानूनी कार्यवाही करने हेतु कोई कदम नहीं उठाते। परिणामस्वरूप ऐसे अपराध दिनोंदिन बढते जा रहे हैं।
मैं उक्त समस्या को समाधान तक ले जाने के लिये कुछ तथ्य सर्वसाधारण के सामने रखना चाहता हूँ। रेलवे के अफसरों को टिकिट चैकरों की कारगुजारियों का पता है या नहीं, केवल इससे काम नहीं चलेगा। हर विभाग का हर अफसर जानता है कि ऊपर एवं नीचे कहाँ-कहाँ क्या-क्या चल रहा है। इसी प्रकार से हर रेलवे अफसर भी जानता है कि कहाँ क्या चल रहा है। रेल मन्त्री जी भी इस बात को अवश्य ही जानती ही होंगी। लेकिन सबसे बडा सवाल तो ये है कि इस प्रकार के अपराध के लिये रेल मन्त्री को शिकायत करने से भी क्या हासिल होगा, क्योंकि शायद अनेकों को ज्ञात ही नहीं होगा कि टिकिट चैकर द्वारा पैसा लेकर टिकिट नहीं देना या रसीद नहीं देना, इतना छोटा अपराध नहीं है कि रेले मन्त्री जैसे छोटे स्तर पर इसकी कानूनी सजा दी जा सके, बल्कि यह बहुत बडा एवं गम्भीर अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 409 में इसे अमानत में खायानत का अपराध माना गया है। जिसे कानूनी भाषा में लोक सेवक द्वारा किये जाने वाले आपराधिक न्यास भंग के अपराध की संज्ञा दी गयी है। इस धारा के तहत इस अपराधी के लिये आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है। केवल रेलवे में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक राज्य की रोडवेज की बसों में भी कण्डक्टर्स के द्वारा भी यात्रियों से किराया लेकर टिकिट नहीं देना भी ऐसा ही अपराध है और सजा भी समान है। लेकिन क्या हममें से किसी ने कभी सुना है कि किसी रेलवे के टिकिट चैकर या रोडवेज के कण्डक्टर को किकिट नहीं देकर जेब में पैसा रख लेने के अपराध में आजीवन कारावास की या कोई छोटे कारारवास की सजा भी हुई हो?
हालात ऐसे ही रहे तो कारावास की सजा कभी होगी भी नहीं! क्योंकि रेलवे या रोडवेज के प्रबन्धन द्वारा तो इस अपराध की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज की नहीं जायेगी। पुलिस खुद लिखने से रही, क्योंकि पुलिस वाले तो खुद ही रेल एवं बसों में मुफ्त (फ्री) में यात्रा करते रहते हैं। ऐसे हालात में आप-हममें से ही कुछ लोगों को प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के रूप में इस प्रकार के अपराध को रोकने के लिये रेलवे के मामले में जीआरपी (पुलिस थाने) में एवं रोडवेज के मामले में सम्बन्धित क्षेत्र के पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करवाना होगा। हालांकि किसी एक व्यक्ति के लिये यह आसान काम नहीं है। जो लोग ऐसा सोचते हैं कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जानी चाहिये। वे स्वयं अनुभव करके देख सकते हैं। पर्याप्त सबूत एवं साक्ष्य उपलब्ध करवाने के बावजूद भी पहली नजर में पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करने के लिये जी-जान लगा देगी। लेकिन फिर भी मैं यही कहूँगा कि असम्भव कुछ भी नहीं है।किसी एक रेलवे के टिकिट चैकर या रोडवेज के कण्डक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दो, फिर देखो क्या होता है।
रेल मन्त्री या राज्य के यातायात मन्त्री को शिकायत करने से कुछ नहीं होने वाला। क्योंकि रेल मन्त्री क्या, हम यदि राष्ट्रपति को भी लिखेंगे तो भी उसकी जाँच वे ही अफसर करेंगे, जिनके चरित्र के बारे में हम सब जानते हैं। प्रशासनिक व्यवस्था की यह बहुत बडी खामी है। इन अफसरों के द्वारा अपने कर्त्तव्यों का पालन किया गया होता तो देश की वर्तमान दुर्दशा नहीं होती!
किसी भी ऐसे नागरिक को जो इस प्रकार के मुद्दों को उठाना चाहता हो, उसको भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की ओर से यदि किसी प्रकार के कानूनी परामर्श की जरूरत हो तो हम सदैव उपलब्ध है। सायं 07.30 से 08.00 के बीच स्वयं मुझसे भी फोन नं. 0141-2222225 पर सम्पर्क किया जा सकता सकता है।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
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