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6.4.11

हजारे के सुझाव उचित, लेकिन स्वयं लोकपाल बिल बनाने की मांग असंवैधानिक!


हजारे के सुझाव उचित, लेकिन स्वयं लोकपाल बिल बनाने की मांग असंवैधानिक!



यह सही है कि लोकपाल बिल में सुधार के लिये जो भी सुझाव दिये गये हैं, उन्हें मानने के लिये केन्द्र सरकार पर दबाव डालना जरूरी है और इसके लिये सरकार को मजबूर करना चाहिये, न कि इस बात के लिये कि लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने के लिये सरकार अकेली सक्षम नहीं है और अकेले सरकार द्वारा बिल का ड्राफ्ट बनाना अलोकतान्त्रिक एवं निरंकुशता है|

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

इस बात में कोई शक नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिये और समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों की ओर से लोकपाल बिल की कमियों के बारे में कही गयी बातें पूरी तरह से न्यायोचित भी हैं| जिनका हर भारतवासी को समर्थन करना चाहिये| इसके उपरान्त भी यह बात किसी भी दृष्टि से संवैधानिक या न्यायोचित नहीं है कि-

‘‘सरकार अकेले लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करती है तो यह लोकशाही नहीं है और यह निरंकुशता है|’’

ऐसा कहकर तो हजारे एवं उनके साथी सरकार की सम्प्रभु शक्ति को ही चुनौती दे रहे हैं| हम सभी जानते हैं कि भारत में लोकशाही है और संसद लोकशाही का सर्वोच्च मन्दिर है| इस मन्दिर में जिन्हें भेजा जाता है, वे देश की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं| निर्वाचित सांसदों द्वारा ही संवैधानिक तरीके से सरकार चुनी जाती है| ऐसे में सरकार के निर्णय को ‘‘निरंकुश’’ या ‘‘अलोकतान्त्रिक’’ कहना असंवैधानिक है और संविधान से परे जाकर हजारे एवं उनके साथियों से पूछकर लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने के लिये भारत की सरकार को मजबूर करना भारतीय लोकतन्त्र को नष्ट करने के समान है|

यदि संसद में चुने जाने वाले लोग भ्रष्ट हैं तो इसमें संसद या संविधान का दोष कहॉं है, यह तो हमारा दोष है| हम ही ऐसे लोगों को चुनकर भेजते हैं| या अधिक से अधिक निर्वाचन प्रणाली में दोष हो सकता है| लोकपाल बिल के बहाने लोकतन्त्र एवं संसद को चुनौती देना और गॉंधीवाद का सहारा लेना-नाटकीयता के सिवा कुछ भी नहीं है| यह संविधान का ज्ञान नहीं रखने वाले देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं के साथ खुला खिलवाड़ है| यह उन लोगों को सड़कों पर उतरने के लिये मजबूर करना है, जो नहीं जानते कि उनसे क्या करवाया जा रहा है| यह देश की संवैधानिक व्यवस्था को खुली चुनौती है! यदि सरकार इस प्रकार की प्रवृत्तियों के समक्ष झुक गयी तो आगे चलकर किसी भी बिल को सरकार द्वारा संसद से पारित नहीं करवाया जा सकेगा|

यह सही है कि लोकपाल बिल में सुधार के लिये जो भी सुझाव दिये गये हैं, उन्हें मानने के लिये केन्द्र सरकार पर दबाव डालना जरूरी है और इसके लिये सरकार को मजबूर करना चाहिये, न कि इस बात के लिये कि लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने के लिये सरकार अकेली सक्षम नहीं है और अकेले सरकार द्वारा बिल का ड्राफ्ट बनाना अलोकतान्त्रिक एवं निरंकुशता है|

परोक्ष रूप से यह मांग भी की जा रही है कि लोकपाल बिल बनाने में अन्ना हजारे और विदेशों द्वारा सम्मानित लोगों की हिस्सेदारी/भागीदारी होनी चाहिये| आखिर क्यों हो इनकी भागीदारी? हमें अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों पर विश्‍वास क्यों नहीं है| यदि विश्‍वास नहीं है तो हमने उन्हें चुना ही क्यों? हजारे की यह जिद उचित नहीं कही जा सकती| संविधान से परे जाकर किसी को भी ऐसा हक नहीं है कि वह सरकार के निर्णय को लोकशाही के विरुद्ध सिद्ध करने का प्रयास करने का दुस्साहस करे और देश के लोकतान्त्रिक माहौल को खराब करे|

यदि सरकार एक बार ऐसे लोगों के आगे झुक गयी तो सरकार को हर कदम पर झुकना होगा| कल को कोई दूसरा अन्ना हजारे जन्तर-मन्तर पर जाकर अनशन करने बैठ जायेगा और कहेगा कि-
इस देश का धर्म हिन्दु धर्म होना चाहिये|

कोई दूसरा कहेगा कि इस देश से मुसलमानों को बाहर निकालना चाहिये|

कोई स्त्री स्वतन्त्रता का विरोधी मनुवादी कहेगा कि महिला आरक्षण बिल को वापस लिया जावे और इस देश में स्त्रियों को केवल चूल्हा चौका ही करना चाहिये|

इसी प्रकार से समानता का तार्किक विश्‍लेषण करने वाला कोई अन्य यह मांग करेगा कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिये|

ऐसी सैकड़ों प्रकार की मांग उठाई जा सकती हैं|

जिस प्रकार से रूबिया अपहरण मामले में सरकार ने आतंकियों का छोड़कर गलती की थी, जो लगातार आतंकियों द्वारा दौहराई जाती रही है, उसी प्रकार से यदि हजारे की मांग को मानकर सरकार संसद की सर्वोच्चता की चुनौती के आगे झुक गयी तो हमेशा-हमेशा को संसद की सर्वोच्चता समाप्त हो जायेगी|

सरकार को लोकपाल बिल में वे सभी बातें शामिल करनी चाहिये जो हजारे एवं अन्य लोगों की ओर से प्रस्तुत की जा रही हैं| इसमें कोई हर्ज भी नहीं है, क्योंकि इस देश की व्यवस्था में अन्दर तक घुस चुके भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो लोकपाल को स्वतन्त्र एवं ताकतवर बनाया जाना सम-सामयिक जरूरत है| लेकिन इस प्रकार की मांग ठीक नहीं है कि निर्वाचित प्रतिनिधि कानून बनाने से पूर्व समाज के उन लोगों से पूछें, जिन्हें समाज ने कभी नहीं चुना| यह संविधान और लोकतन्त्र का खुला अपमान है|

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