इस बात को कोई साधारण पढालिखा या साधारण सी समझ रखने वाला व्यक्ति भी समझता है कि देश के खजाने को नुकसान पहुँचाने वाला व्यक्ति देशद्रोही से कम अपराधी नहीं हो सकता और उसके विरुद्ध कानून में किसी भी प्रकार के रहम की व्यवस्था नहीं होनी चाहिये, लेकिन जिन्दगीभर भ्रष्टाचार के जरिये करोडों का धन अर्जित करने वालों को सेवानिवृत्ति के बाद यदि 1/2 पेंशन रोक कर सजा देना ही न्याय है तो फिर इसे तो कोई भी सरकारी अफसर खुशी-खुशी स्वीकार कर लेगा।
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1-http://nvonews.in/2010/11/20/life-style/12497/2-http://www.pressnote.in/nirkunsh-awaz_100573.html
3-http://himalayauk.org/2010/11/20/%E0%A4%AF%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7/
4-http://www.janokti.com/government-failure-%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80/%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A4%9C%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/
5-http://khabarindiya.com/index.php/articles/show/526_yah_kaisa_nyay?utm_source=feedburner&utm_medium=email&utm_campaign=Feed:+khabarindiya+(KhabarIndiya.Com)&utm_content=Yahoo!+Mail
6-http://www.merikhabar.com/news_details.php?nid=37049
7-http://presspalika.mywebdunia.com/2010/11/20/1290231720000.htmll
8-http://drnirankush.wordpress.com/2010/11/20/%E0%A4%AF%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7/
9-http://www.janjwar.com/2010/11/blog-post_21.html#links
10-http://www.pravakta.com/story/16375
11-http://www.nns24.net/khabar/article_detail.php?id=81&type=1
12-http://presspalika.blogspot.com/2010/11/blog-post_19.html
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने एक निर्णय सुनाया, जिसमें न्यायाधीश द्वय प्रदीप नंदराजोग तथा एमसी गर्ग की खण्डपीठ ने रक्षा मंत्रालय से वरिष्ठ लेखा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हो चुके एचएल गुलाटी की आधी पेंशन काटे जाने की बात कही गयी। गुलाटी भारत सरकार की सेवा करतु हुए 36 झूठे दावों के लिए भुगतान को मंजूरी देकर सरकारी खजाने को 42 लाख रुपये से भी अधिक की चपत लगायी थी। हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार का अपराध सिद्ध होने पर भी गुलाटी को जेल में डालने पर विचार तक नहीं किया और रक्षा मंत्रालय में रहकर भ्रष्ट आचरण करने वाले एचएल गुलाटी की 50 फीसदी पेंशन काटी जाने की सजा सुना दी।
हाई कोर्ट के इस निर्णय से भ्रष्टाचार को बढावा ही मिलेगा :
इस निर्णय को अनेक तथाकथित राष्ट्रीय कहलाने वाले समाचार-पत्रों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अफसरों के लिये कोर्ट का कडा सन्देश कहकर प्रचारित किया। जबकि मेरा मानना है कि एक सिद्धदोष भ्रष्ट अपराधी के विरुद्ध हाई कोर्ट का इससे नरम रुख और क्या हो सकता था? मैं तो यहाँ तक कहना चाहूँगा कि हाई कोर्ट के इस निर्णय से भ्रष्टाचार पर लगाम लगने के बजाय भ्रष्टाचार को बढावा ही मिलेगा।
अनुशासनिक कार्यवाही के साथ-साथ दण्ड विधियों के तहत भी कार्यवाही :
प्रश्न यह नहीं है कि कोर्ट का रुख नरम है या कडा, बल्कि सबसे बडा सवाल तो यह है कि 42 लाख रुपये का गलत भुगतान करवाने वाले भ्रष्टाचारी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के तहत मामला दर्ज करके दण्डात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की गयी? और केवल विभागीय जाँच करके और विभागीय नियमों के तहत की जाने वाली अनुशासनिक कार्यवाही की औपचरिकता पूर्ण करके मामले की फायल बन्द क्यों कर दी गयी? जबकि विभागीय कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि लोक सेवकों द्वारा किये जाने वाले अपराधों के लिये अनुशासनिक कार्यवाही के साथ-साथ दण्ड विधियों के तहत भी कार्यवाही की जा सकती है या की जानी चाहिये।
कार्यवाही की जा सकती है या की जानी चाहिये शब्दावली भी समस्या की असल जड और 99 फीसदी समस्याओं के मूल कारण आईएएस :
इन कानूनों में-कार्यवाही की जा सकती है या की जानी चाहिये शब्दावली भी समस्या की असल जड है! इसके स्थान पर विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही के साथ-साथ दण्ड विधियों के तहत भी कार्यवाही की जायेगी और ऐसा नहीं करने पर जिम्मेदार उच्च लोक सेवक या विभागाध्यक्ष के विरुद्ध भी कार्यवाही होगी। ऐसा कानूनी प्रावधान क्यों नहीं है? जवाब भी बहुत साफ है, क्योंकि कानून बनाने वाले वही लोग हैं, जिनको ऐसा प्रावधान लागू करना होता है। ऐसे में कौन अपने गले में फांसी का फन्दा बनाकर डालना चाहेगा? कहने को तो भारत में लोकतन्त्र है और जनता द्वारा निर्वाचित सांसद, संसद मिलबैठकर कानून बनाते हैं, लेकिन- संसद के समक्ष पेश किये जाने वाले कानूनों की संरचना भारतीय प्रशासनिक सेवा के उत्पाद महामानवों द्वारा की जाती हैं। जो स्वयं ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस देश की 99 फीसदी समस्याओं के मूल कारण हैं।
जनता को कारावास और जनता के नौकरों की मात्र निंदा :
विचारणीय विषय है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को गाली-गलोंच और मारपीट करता है तो आरोपी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के तहत अपराध बनाता है और ऐसे आरोपी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज होने पर पुलिस जाँच करती है। मजिस्ट्रेट के समक्ष खुली अदालत में मामले का विचारण होता है और अपराध सिद्ध होने पर कारावास की सजा होती है, जबकि इसक विपरीत एक अधिकारी द्वारा अपने कार्यालय के किसी सहकर्मी के विरुद्ध यदि यही अपराध किया जाता है तो उच्च पदस्थ अधिकारी या विभागाध्यक्ष ऐसे आरोपी के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज नहीं करवाकर स्वयं ही अपने विभाग के अनुशासनिक नियमों के तहत कार्यवाही करते हैं। जिसके तहत आमतौर पर चेतावनी, उसके कृत्य की भर्त्सना (निंदा) किये जाने आदि का दण्ड दिया जाता है और मामले को दफा-दफा कर दिया जाता है।
विभागाध्यक्ष भी तो अपराध कारित करते रहते हैं :
इस प्रकार के प्रकरणों में प्रताड़ित या व्यथित व्यक्ति (पक्षकार) की कमी के कारण भी अपराधी लोक सेवक कानूनी सजा से बच जाता है, क्योंकि व्यथित व्यक्ति स्वयं भी चाहे तो मुकदमा दायर कर सकता है, लेकिन अपनी नौकरी को खतरा होने की सम्भावना के चलते वह ऐसा नहीं करता है। लेकिन यदि विभागाध्यक्ष द्वारा मुकदमा दायर करवाया जाये तो विभागाध्यक्ष की नौकरी को तो किसी प्रकार का खतरा नहीं हो सकता, लेकिन विभागाध्यक्ष द्वारा पुलिस में प्रकरण दर्ज नहीं करवाया जाता है। जिसकी भी वजह होती है-स्वयं विभागाध्यक्ष भी तो आये दिन इस प्रकार के अपराध कारित करते हुए ही अपने विभाग में अपने अधिनस्थों पर आतंक को कायम रख पाते हैं। जिसके चलते मनमानी व्यवस्था संचालित होती है, जो कानूनों के विरद्ध कार्य करवाकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने के लिये जरूरी होता है।
विभागीय जाँच के नाम पर सुरक्षा कवच :
किसी भी सरकारी विभाग में किसी महिलाकर्मी के साथ छेडछाड या यौन-उत्पीडन करने, सरकारी धन का दुरुपयोग करने, भ्रष्टाचार करने, रिश्वत मांगने आदि मामलों में भी इसी प्रकार की अनुशासनिक कार्यवाही होती है, जबकि इसी प्रकार के अपराध आम व्यक्ति द्वारा किये जाने पर, उन्हें जेल की हवा खानी पडती है। ऐसे में यह साफ तौर पर प्रमाणित हो जाता है कि जनता की सेवा करने के लिये, जनता के धन से, जनता के नौकर के रूप में नियुक्ति सरकारी अधिकारी या कर्मचारी, नौकरी लगते ही जनता और कानून से उच्च हो जाते हैं। उन्हें आम जनता की तरह सजा नहीं दी जाती, बल्कि उन्हें विभागीय जाँच के नाम पर सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाया दिया जाता है।
विभागीय जाँच का असली मकसद अपराधी को बचाना :
जबकि विधि के इतिहास में जाकर गहराई से और निष्पक्षतापूर्वक देखा जाये तो प्रारम्भ में विभागीय जाँच की अवधारणा केवल उन मामलों के लिये स्वीकार की गयी थी, जिनमें कार्यालयीन (ओफिसियल) कार्य को अंजाम देने के दौरान लापरवाही करने, बार-बार गलतियाँ करने और कार्य को समय पर निष्पादित नहीं करने जैसे दुराचरण के जिम्मेदार लोक सेवकों को छोटी-मोटी शास्ती देकर सुधारा जा सके, लेकिन कालान्तर में लोक सेवकों के सभी प्रकार के कुकृत्यों को केवल दुराचरण मानकर विभागीय जाँच का नाटकर करके, उन्हें बचाने की व्यवस्था लागू कर दी गयी। जिसकी ओट में सजा देने का केवल नाटक भर किया जाता है, विभागीय जाँच का असली मकसद अपराधी को बचाना होता है।
खजाने को नुकसान पहुँचाने वाला देशद्रोही से कम नहीं :
इस बात को कोई साधारण पढालिखा या साधारण सी समझ रखने वाला व्यक्ति भी समझता है कि देश के खजाने को नुकसान पहुँचाने वाला व्यक्ति देशद्रोही से कम अपराधी नहीं हो सकता और उसके विरुद्ध कानून में किसी भी प्रकार के रहम की व्यवस्था नहीं होनी चाहिये, लेकिन जिन्दगीभर भ्रष्टाचार के जरिये करोडों का धन अर्जित करने वालों को सेवानिवृत्ति के बाद यदि 1/2 पेंशन रोक कर सजा देना ही न्याय है तो फिर इसे तो कोई भी सरकारी अफसर खुशी-खुशी स्वीकार कर लेगा।
उम्र कैद की सजा का अपराध करके भी अपराधी नहीं :
दिल्ली हाई कोर्ट के इस निर्णय से 42 लाख रुपये के गलत भुगतान का अपराधी सिद्ध होने पर भी गुलाटी न तो चुनाव लडने या मतदान करने से वंचित होगा और न हीं वह कानून के अनुसार अपराधी सिद्ध हो सका है। उसे केवल दुराचरण का दोषी ठहराया गया है। जबकि ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 409 के अनुसार आपराधिक न्यासभंग का मामला बनता है, जिसमें अपराध सिद्ध होने पर आजीवन कारावास तक की सजा का कडा प्रावधान किया गया है। फिर प्रश्न वही खडा हो जाता है कि इस कानून के तहत मुकदमा कौन दर्ज करे?
जब तक कानून की शब्दावली में-ऐसा किया जा सकता है! किया जाना चाहिये! आदि शब्द कायम हैं कोई कुछ नहीं कर सकता! जिस व्यक्ति ने 36 मामलों में गलत भुगतान करवाया और सरकारी खजाने को 42 लाख की क्षति कारित की, उसके पीछे उसका कोई पवित्र ध्येय तो रहा नहीं होगा, बल्कि 42 लाख में से हिस्सेदारी तय होने के बाद ही भुगतान किया गया होगा। जो सीधे तौर पर सरकारी धन, जो लोक सेवकों के पास जनता की अमानत होता है। उस अमान की खयानत करने का मामला बनता है, जिसकी सजा उक्त धारा 409 के तहत अपराधी को मिलनी ही चाहिये।
कोर्ट को स्वयं संज्ञान लेकर आपराधिक मामले दर्ज करने के आदेश देने चाहिये :
मेरा तो स्पष्ट मामना है कि जैसे ही कोर्ट के समक्ष ऐसे प्रकरण आयें, कोर्ट को स्वयं संज्ञान लेकर अपराधी के साथ-साथ सक्षम उच्च अधिकारी या विभागाध्यक्ष के विरुद्ध भी आपराधिक मामले दर्ज करने के आदेश देने चाहिये, जिससे ऐसे मामलों में स्वत: ही प्रारम्भिक स्तर पर ही पुलिस में मामले दर्ज होने शुरू हो जायें और अपराधी विभागीय जाँच की आड में सजा से बच कर नहीं निकल सकें। इसके लिये आमजन को आगे आना होगा और संसद को भी इस प्रकार का कानून बनाने के लिये बाध्य करना होगा। अन्यथा गुलाटी जैसे भ्रष्टाचारी जनता के धन को इसी तरह से लूटते रहेंगे और सरेआम बचकर इसी भांति निकलते भी रहेंगे।
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