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PRESSPALIKA NEWS CHANNEL-प्रेसपालिका न्यूज चैनल

11.1.11

एक साथ काम करना सफलता है!


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

श्री संजय राणा जी ने क्रान्तिकारी देशभक्त हिन्दुस्तान के नाम से इसी ब्लॉग पर प्रकाशित मेरे आलेख "आपने पुलिस के लिये क्या किया" पर निम्न टिप्पणी दी है।

"बहुत ही सही कहा है आपने पर कुछ पुलिस वाले होते ही ऐसे हैं जैसे ही खाकी में आते हैं उनका रूप ही बदल जाता है अभी कल की ही बात है हम अपनी बोलेरो गाड़ी से बरोटीवाला हिमाचल से करनाल हरयाना के लिए जा रहे थे तो जैसे ही हमारी गाड़ी अम्बाला क्रोस करके निकली तो पुलिस के एक नाके ने हमें हाथ दिया हमने गाड़ी सईड की और इतने में एक कोंस्टेबल आया और ड्राईवर को कहने लगा की गाड़ी के कागज़ दिखा तो ड्राईवर ने सारे सम्बंधित कागजात दिखाए फिर उसने लाईन्सेंस माँगा उसने वो भी दिखा दिया, इतने में वो कहने लगा नीचे उतर और साहब के पास आजा, वो ड्राईवर भी उतर गया और साथ ही साथ दूसरी तरफ से में भी उसके साथ उनके बड़े साहब के पास पहुंचा वो कड़क आवाज में पूछा कितने आदमी बैठे हैं गाड़ी में ड्राईवर ने कहा साहब आठ और एक में यानी कुल नौ , साहब कहने लगा कितने पास हैं गाड़ी में उसने कहा इतने ही पास हैं साहब जितने बिठाये हैं कहने लगा बेवकूफ बनाता है मेरा उसने कहा साहब इसमें बेवकूफ की कोण सी बात है कहने लगा तुने सीट बेल्ट क्यूँ नि लगा रखी थी उसने कहा साहब लगा राखी थी पर जब आपके पास आना था तो वो तो खोल के ही आना पडेगा पर वो कहाँ माने कहा मन्ने बेवकूफ ब्न्नावे तू बीस साल हो गए नोकरी कर्वे से, ये तो चालान हे तेरा हमने रक्वेस्ट भी की की साहब क्यूँ जान बूझ के कर रहे हो पर वो नि मन और उसने सीट बेल्ट का चालान कर ही दिया और कहा सिर्फ सौ रुपे का चालान करा मेने तेरे लिए इन्ना करूँ की दस दिना के अंदर अंदर अपनी आर सी अम्बाला पुलिस लाईन ते ले जावें आईके बस जा अब क्या मुंह देखे खड़े खड़े से...
बस इतना तानाशाह सारा मूड ही खराब हो गया तो फिर आप ही बताओ की कैसे हैं ये वर्दी वाले हमारे सेवक..."
उक्त टिप्पणी के प्रतिउत्तर में, मैंने श्री संजय जी को निम्न जानकारी प्रस्तुत की है:-

आदरणीय श्री संजय राणा जी,
नमस्कार।

आशा है कि आप कुशल होंगे।

आपने बास-वोइस पर टिप्पणी की एवं बास-वोइस पर प्रकाशित अनेक आलेखों को अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित किया हुआ है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आपने अपने ब्लॉग पर भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की सदस्यता के लिये http://baasindia.blogspot.com का लिंक भी दिया हुआ है। यह सब आपके एक अच्छे व्यक्ति होने की प्रीतीति कराने के संकेत हैं। इस सबके लिये बास के 17 राज्यों में सेवारत 4610 आजीवन सदस्यों की ओर से मैं आपका आभार ज्ञापित करता हूँ। आपकी ओर से कुछ सवाल भी उठाये गये हैं। इन सबके बारे में कुछ बातें आपके समक्ष रखना जरूरी समझता हूँ। यदि एक भी बात अनुचित लगे तो कृपया अवगत कराने का कष्ट करें :-

यह बात सही है और हम सभी जानते भी हैं कि देशभर में भ्रष्टाचार हर जगह पर व्याप्त है। जिसके शिकार सभी आम लोग हो रहे हैं। मैं ऐसा मानता हूँ कि अब समय बहुत तेजी से बदल रहा है। केवल इतने से ही काम नहीं चल सकता कि हम सही हैं और कानून का पालन करते हैं, इस कारण हमें कोई परेशान नहीं करें। आप रोड पर चलते समय इस बात का अनेकों बार अहसास कर सकते हैं। जब आप यातायात नियमों का पालन करते हुए वाहन चलाते हैं या पैदल चलते हैं। फिर भी दुर्घटना हो जाती है या होते-होते बचती है। कहने का मतलब यह है कि आपको सडक पर चलना है तो न मात्र स्वयं यातायात के नियमों का पालन करना है, बल्कि दूसरों द्वारा नियमों का पालन नहीं करने से भी अपने आपको बचाना होगा। क्या करोगे जिन्दा रहने के लिये जरूरी है।

इसी प्रकार से हमें भ्रष्ट व्यवस्था में रहते हुए यदि स्वयं को भ्रष्टाचार से बचाना है तो न मात्र स्वयं सही रहना होगा, बल्कि इसके साथ-साथ हमें अपने बचाव एवं संरक्षण के सरकार से इतर भी कुछ उपाय करने होंगे। जब बर्षात हो रही होती है या होने की सम्भावना होती है तो हम घर से छतरी या रैनकोट साथ में लेकर निकलते हैं। यद्यपि इसके बावजूद भी अनेक बार हम बर्षात में न मात्र भीग जाते हैं, बल्कि बीमार भी हो जाते हैं। क्योंकि तूफानी बर्षात छतरी को भी उडा ले जाती है। बर्षात के साथ ओले गिरने पर छतरी या रैनकोट बचाव नहीं कर सकते हैं। इसके बावजदू भी हम बर्षात से बचाव के लिये घर से छतरी और रैनकोट साथ में लेकर अवश्य निकलते हैं।

हम सबको ज्ञात है कि रोड पर कहीं न कहीं यातायात पुलिस अवश्य मिलेगी। हमें यह भी ज्ञात है और यदि ज्ञात नहीं है तो ज्ञात होना चाहिये कि यातायात पुलिस में पोस्टिंग करवाने के लिये बडे अफसरों को अग्रिम घूस तो देनी ही होती है। इसके अलावा जब तक यातायात पुलिस में रहना है, वाहनों के चालान का टार्गेट पूरा करने के साथ-साथ प्रतिमाह निर्धारित रकम भी साहब लोगों को पहुँचानी होती है। जो लोग आपकी तरह से हर प्रकार के नियम का पालन करके चलते हैं, उन्हें चालान कटवाना होता है और केवल जुर्माना भरना होता है, जिससे यातायात पुलिस का टार्गेट पूरा होता है। लेकिन जो लोग कानून का पालन नहीं करते हैं, उनसे हवालात में बन्द करने की धमकी के सहारे रिश्वत भी वसूली जाती है। इस सबका का यातायात पुलिस के सिपाही से लेकर यातायात मन्त्री तक सबको पता है। फिर भी कोई कुछ नहीं कर रहा है।

ऐसे में आपको और हम सबको अर्थात् सडक पर चलने वालों को ही अपने बचाव के लिये कुछ करना होगा। ऐसा करना किसी कानून के कारण तो जरूरी नहीं है, लेकिन रोड पर चलने की परिस्थितिजन्य बाध्यता अवश्य है। जिससे बचाव के उपाय कोई और नहीं, बल्कि स्वयं हमें ही करने होंगे। हम सभी जानते हैं कि जब भी हमारे मोहल्ले में मलेरिया फैलता है तो हम मलेरिया रोधी छिडकाव नहीं करने के लिये, जिम्मेदार लोगों के भरोसे नहीं बैठे रहते हैं, बल्कि मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों ये बचाव के उपाय खुद ही करते हैं और अपने आपको बीमार होने से बचाने का हर सम्भव प्रयास करते हैं, बेशक बचाव करते-करते हम अनेक बार बीमार भी हो जाते हैं, क्योंकि सब कुछ हमारे नियन्त्रण में तो नहीं होता है।

इसी प्रकार से जनता की सेवा करने के नाम पर वेतन उठाने वाले और कानून का पालन कराने के लिये तैनात लोक सेवकों अर्थात् सरकारी कर्मचारियों एवं अफसरों के कानूनी कहर से बचने के लिये देश के आम व्यक्ति को अपने स्तर पर कुछ वैकल्पिक उपाय करने होते हैं।

आम लोगों के पास अपनी एकता के अलावा और क्या है? लेकिन एकता में बहुत ताकत होती है और ताकत से लोग डरते हैं। बेशक ताकत कानूनी हो या गैर-कानूनी! ताकत के सामने कौन टिक सकता है और संगठित ताकत तो देश की सरकार तक को बदल सकती है। इसलिय हमने 1993 में "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" की स्थापना की थी और कानून का कवच धारण करके आम लोगों का खून पीने वालों के कहर से अपने आपको बचाने, जरूरतमन्दों की मदद करने एवं सार्वजनिक हित के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये सजग लोगों का एक मंच तैयार किया। जिसके सहारे हम इस कुव्यवस्था के खिलाफ संघर्षरत हैं। बेशक इसके बावजूद भी हमारे कार्यकर्ताओं को भी अनेक बार अप्रिय स्थितियों का सामना करना पडता है, लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि तूफान में छतरी उड जाने के कारण छतरी को दोष नहीं दिया जा सकता और न हीं छतरी रखना छोडा जा सकता है। तूफान की ताकत से कहीं अधिक मजबूत छतरी का निर्माण करने एवं छतरी का उपयोग करना सीखना जरूरी है।

मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि बास के "प्रोटेक्शन अम्ब्रेला" को अपनाने वालों के सम्मान एवं अधिकारों की रक्षा होती है। बशर्ते कि ऐसे लोग स्वयं ठीक हों और अपने आचरण से अपने आदर्शों को प्रमाणित कर सकें। मेरा ऐसा मानना है कि मैं वहीं बातें लोगों से कहूँ, जिनपर सबसे पहले मैं स्वयं अमल कर सकूँ। जिन बातों को मैं अपने जीवन में धारण नहीं कर सकता, उन्हें दूसरे कैसे अपनायेंगे? संजय जी क्षमा कीजियेगा आप जब तक बास के सदस्य नहीं हैं, आपके ब्लॉग के पाठकों को आप "http://baasindia.blogspot.com" का लिंक देकर भी बास की सदस्यता के लिये ईमानदारी से प्रेरित नहीं कर सकते हैं।

हमारे अनेक सदस्यों को आपकी ही भांति यातायात पुलिस से दो-चार होना पडता है, लेकिन जैसे ही यातायात पुलिस को पता चलता है कि वाहन मालिक या चालक बास का पदाधिकारी है, कम से कम धौंस-दबट या असंसदीय भाषा का प्रयोग करने या अकारण चालान काटने से पूर्व यातायात पुलिस को सोचना पडता है। ऐसा नहीं है कि बास का फोटो कार्ड अभेद्य "सुरक्षा कवच" है। अनेक बार बास के परिचय के बाद भी अप्रिय स्थिति का सामना करना पडता है, जिससे घटना के बाद संगठन द्वारा कानूनी तरीके से निपटा जाता है, जो आतताईयों को अधिक कष्टप्रद अनुभव होता है।

अत: मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि हमारे कार्यकर्ताओं को अत्याचारों, नाइंसाफी एवं मनमानी के विरुद्ध काफी सीमा तक संरक्षण प्राप्त हो रहा है। इसलिये अकसर मैं जहाँ कहीं भी बुलाया जाता हूँ या जब कभी भी कहीं बोलने का मौका मिलता है, दो बातें जरूर कहता हूँ।

एक-"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैस?" और

दूसरी-"एक साथ आना शुरूआत है, एक साथ चलना प्रगति है और एक साथ काम करना सफलता है!"

श्री संजय जी पुलिस जैसी भी है, उसे उसके लिये दोषी ठहराकर समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। जैसा समाज है और समाज में जितने भी गुण-दोष हैं, वैसे ही समाज में नागरिक हैं और उन्हीं नागरिकों में से पुलिस है।

शुभकामनाओं सहित।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
098285-02666
0141-2222225

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