Tuesday, December 1, 2009
बकरीद पर बेजुबानों की सामूहिक हत्या!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मेरे हृदय से मेरे किसी भी मुश्लिम मित्र को 'बकरीद' के दिन मुबारकबाद नहीं निकलती है। मेरे अनेक अन्तरंग मुस्लिम मित्र हैं, जो मेरे सुख-दुख में मेरे साथ खड़े रहते हैं। लेकिन उन्हें भी मैं आज के दिन मुबाकरबाद नहीं दे सकता। अनेकों को शायद बुरा भी लगता होगा, लगे तो लगे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! जो लोग धर्म की आड़ में मूक जानवर की हत्या करते हैं, उन्हें मुबारकबाद दे ही नहीं सकता।
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आज का दिन (28 नवम्बर, 09) एक ऐसा दिन जो साल के 365 दिन में, मेरे लिये सबसे दुखद दिन होता है। धर्म के नाम पर, बेजुबान और बेगुनाह जानवरों की सामूहिक हत्या करके 'ईद' अर्थात् खुशियाँ मनाना कहीं से भी गले नहीं उतरता है। मैं किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता।
मैं आगे लिखने से पूर्व स्पष्ट कर दूं कि मैं एक धर्मनिरपेक्ष विचारधारा मैं विश्वास रखने वाला ऐसा व्यक्ति हूं, जो ऐसा विचार रखता है कि किसी भी जीव की हत्या करना अधर्म है। ये मेरा, नितान्त मेरा अपना विचार है। न मैं इसे किसी पर थोपना चाहता हूँ और न हीं मैं दूसरों के विचारों को घृणित दृष्टि से देखना चाहता हूँ!
यदि विश्व के अधिसंख्य लोगों द्वारा मांस भक्षण किया जाता है, तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इसे गलत ठहराने की हिम्मत करना ही सरासर मूर्खता है। इस सबके उपरान्त भी मेरे हृदय से मेरे किसी भी मुश्लिम मित्र को 'बकरीद' के दिन मुबारकबाद नहीं निकलती है। मेरे अनेक अन्तरंग मुस्लिम मित्र हैं, जो मेरे सुख-दुख में मेरे साथ खड़े रहते हैं। लेकिन उन्हें भी मैं आज के दिन मुबाकरबाद नहीं दे सकता। अनेकों को शायद बुरा भी लगता होगा, लगे तो लगे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! जो लोग धर्म की आड़ में मूक जानवर की हत्या करते हैं, उन्हें मुबारकबाद दे ही नहीं सकता।
मैंने शरियत को पढा है। इस्लाम धर्म की अनेक प्रतिष्ठित पुस्तकों को पढा है। मुस्लिम विद्वानों द्वारा हिन्दी में अनुवादित कुरान को भी पढा है। मुझे कहीं भी मोहम्मद साहब का ऐसा कोई सन्देश पढने को नहीं मिला, जिसमें यह कहा गया हो कि निर्दोष और मूक जानवर की बली देने से खुदा प्रसन्न होता है या इस्लाम को मानने वाले को निर्दोष और मूक जानवर की हत्या करना जरूरी शर्त है। फिर धर्म के नाम पर बकरों की हत्या करने का औचित्य समझ से परे है?
ऐसा भी नहीं है कि बकरों की हत्या सामान्य दिनों में नहीं होती है, निश्चय ही रोज बकरों का कत्ल होता है। भारत जैसे देश में इस्लाम को मानने वालों से कहीं अधिक वेदों और हिन्दु धर्म को मानने वाले मांसभक्षण करते हैं। यहाँ तक कि जैन धर्म को मानने वाले भी मांस भक्षण करते हैं। श्रीमती मेनका गांधी द्वारा संचालित 'पीपुल्स फॉर एनीमल' संगठन में काम करने वाले भी मांसभक्षी हैं।
इसी कारण अनेक कसाई कहते सुने जा सकते हैं कि जिस दिन हिन्दु व्रत-त्यौहार होते हैं, उस दिन उनकी 20 प्रतिशत भी बिक्री नहीं होती है। विश्व स्तर पर इस तथ्य को भी मान्यता मिल चुकी है कि यदि लोग मांस का सेवन नहीं करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है। इसके अलावा अनेक लोगों द्वारा ऐसे तर्क भी दिये जाते हैं कि पर्यावरण एवं प्रकृति को संन्तुलित बनाये रखने के लिये भी गैर-जरूरी जीवों को नियन्त्रित रखना जरूरी है। उनका कहना है कि यदि इससे लोगों को भोजन भी मिले तो इसमें क्या बुराई है। लेकिन, गैर-जरूरी की परिभाषा भी तो ऐसे ही लोगों ने गढी है, जिन्हें मांस भक्षण करना है।
प्रकृति के सन्तुलन को तो सबसे ज्यादा मानव ने बिगाड़ा है, तो क्या मानव की हत्या करके उसके मांस का भी भक्षण शुरू कर दिया जाना चाहिये। तर्क ऐसे दिये जाने चाहिये, जो स्वाभाविक लगें और व्यवहारिक प्रतीत हों।जो भी हो यह आलेख तथ्यों के बजाय भावनाओं पर आधारित है।
मुझे पता है कि मांस भक्षण करने वालों की संख्या तेजी से बढ रही है। इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन बकरे की बलि जरूरी हो चुकी है। इन सब बातों को रोकना असम्भव है। फिर भी संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी देता है। इसलिये मैं अपने विचारों को अभिव्यक्ति देकर अपने आपको हल्का अनुभव कर रहा हूँ।
“कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटवे के पास
ReplyDeleteकरेगा सो भरेगा तू क्यों भया उदास !” आपके लिखने से यदि मन हल्का होता है तो अच्छी बात है. वैसे वैज्ञानिक दृष्टि से अगर देखा जाये तो एक बकरे का मांस तैयार होने पर इतनी वनस्पति नष्ट होती है जिससे कई सौ लोगों की भूख मिटाई जा सकती है. अतः सब लोगों के शाकाहार लेने से किसी प्रकार की भुखमरी की आशंका नहीं है. अश्विनी रॉय
निरंकुश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
इतना गंभीर विषय … और यह पोस्ट आप लोगों तक पहुंचा भी नहीं पाए …?
आपके इन विचारों से मैं शत प्रतिशत सहमति रखता हूं ।
… और , शाकाहार के प्रति समूचे ब्लॉगजगत में बहुत समर्पण और सहमति के साथ जागरुकता का वातावरण है ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार