"आपने पुलिस के लिये क्या किया है?"
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मैं जहाँ कहीं भी लोगों के बीच जाता हूँ और भ्रष्टाचार, अत्याचार या किसी भी प्रकार की नाइंसाफी की बात करता हूँ, तो सबसे पहले सभी का एक ही सवाल होता है कि हमारे देश की पुलिस तो किसी की सुनती ही नहीं। पुलिस इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि अब तो पुलिस से किसी प्रकार के न्याय की या संरक्षण की आशा करना ही बेकार है। और भी बहुत सारी बातें कही जाती हैं।
मैं यह नहीं कहता कि लोगों की शिकायतें गलत हैं या गैर-बाजिब हैं! मेरा यह भी कहना नहीं है कि पुलिस भ्रष्ट नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि हम में से जो लोग इस प्रकार की बातें करते हैं, वे कितने ईमानदार हैं? उनमें से ऐसे कितने हैं, जिन्होने कभी जून के महिने में चौराहे पर खडे यातायात हवलदार या सिवाही से पूछा हो कि भाई तबियत तो ठीक है ना, पानी पिया है या नहीं?
हम से कितने हैं, जिन्होंने कभी थाने में जाकर थाना प्रभारी को कहा हो कि मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकता हूँ? आप कहेंगे कि पुलिस को हमारी मदद की क्या जरूरत है? पुलिसवाला भी एक इंसान ही है। जब हम समाज में जबरदस्त हुडदंग मचाते हैं, तो पुलिसवालों की लगातर कई-कई दिन की ड्यूटियाँ लगती हैं, उन्हें नहाने और कपडे बदलने तक की फुर्सत नहीं मिलती है। ऐसे में उनके परिवार के लोगों की जरूरतें कैसे पूरी हो रही होती हैं, कभी हम इस बात पर विचार करते हैं? ऐसे समय में हमारा यह दायित्व नहीं बनता है कि हम उनके परिवार को भी संभालें? उनके बच्चे को, अपने बच्चे के साथ-साथ स्कूल तक ले जाने और वापस घर तक छोडने की जिम्मेदारी निभाकर देखें?
यात्रा करते समय गर्मी के मौसम में चौराहे पर खडे पुलिसवाले को अपने पास उपलब्ध ठण्डे पानी में से गाडी रोककर पानी पिलाकर देखें? पुलिसवालों के आसपास जाकर पूछें कि उन्हें अपने गाँव, अपने माता-पिता के पास गये कितना समय हो गया है? पुलिस वालों से पूछें कि दंगों में या आतंक/नक्सल घटनाओं में लोगों की जान बचाते वक्त मारे गये पुलिसवालों के बच्चों के जीवन के लिये हम क्या कर सकते हैं? केवल पुलिस को हिकारत से देखने भर से कुछ नहीं हो सकता? हमेशा ही नकारत्मक सोच रखना ही दूसरों को नकारात्मक बनाता है।
हम तो किसी कानून का या नियम का या व्यवस्था का पालन नहीं करें और चाहें कि देश की पुलिस सारे कानूनों का पालन करे, लेकिन यदि हम कानून का उल्लंघन करते हुए भी पकडे जायें तो पुलिस हमें कुछ नहीं कहे? यह दौहरा चरित्र है, हमारा अपने आपके बारे में और अपने देश की पुलिस के बारे में।
कई वर्ष पहले की बात है, मुझे सूचना मिली कि मेरे एक परिचित का एक्सीडेण्ट हो गया है। मैं तेजी से गाडी चलाता हुआ जा रहा था, मुझे इतना तनाव हो गया था कि मैं सिग्नल भी नहीं देख पाया और लाल बत्ती में ही घुस गया। स्वाभाविक रूप से पुलिस वाले ने रोका, तब जाकर मेरी तन्द्रा टूटी।
मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैंने पुलिसवाले के एक शब्द भी बोलने से पहले पर्स निकाला और कहा भाई जल्दी से बताओ कितने रुपये देने होंगे। पुलिसवाला आश्चर्यचकित होकर मुझे देखने लगा और बोला आप कौन हैं? मैंने अपना लाईसेंस दिखाया। उसने जानना चाहा कि "आप इतनी आसानी से जुर्माना क्यों भर रहे हैं।" मैंने कहा गलती की है तो जुर्माना तो भरना ही होगा।
अन्त में सारी बात जानने के बाद उन्होनें मुझसे जुर्माना तो लिया ही नहीं, साथ ही साथ कहा कि आप तनाव में हैं। अपनी गाडी यहीं रख दें और उन्होनें मेरे साथ अपने एक जवान को पुलिस की गाडी लेकर मेरे साथ अस्पताल तक भेजा। ताकि रास्ते में मेरे साथ कोई दुर्घटना नहीं हो जाये?
हमेशा याद रखें कि पुलिस की वर्दी में भी हम जैसे ही इंसान होते हैं, आप उनको सच्ची बात बतायें, उनमें रुचि लें और उनको अपने बीच का इंसान समझें। उन्हें स्नेह और सम्मान दें, फिर आप देखें कि आपके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है। आगे से जब भी कोई पुलिस के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करे तो आप उससे सीधा सवाल करें कि-"आपने पुलिस के लिये क्या किया है?"
आपने अच्छी बात बताई है
ReplyDeleteवन्दे मातरम,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में आकर और आपके द्वारा लिखित पोस्ट पढ़कर आत्मीय प्रसन्नता हुई, मै आपका आभारी हूँ जो आपने मेरे नवोदित ब्लॉग में आकर मुझ अकिंचन का उत्साह बढाया और इस बेहतरीन ब्लॉग तक आने का मार्ग प्रसस्त किया मै आपसे विनम्र निवेदन करता हूँ की भविष्य में भी आप मुझे मार्गदर्शन प्रदान करते रहें ...
"भारतीय"
आपके ब्लॉग में आकर और आपके द्वारा लिखित पोस्ट पढ़कर आत्मीय प्रसन्नता हुई, मै आपका आभारी हूँ जो आपने मेरे नवोदित ब्लॉग में आकर मुझ अकिंचन का उत्साह बढाया और इस बेहतरीन ब्लॉग तक आने का मार्ग प्रसस्त किया मै आपसे विनम्र निवेदन करता हूँ की भविष्य में भी आप मुझे मार्गदर्शन प्रदान करते रहें ...
ReplyDeleteदर्शन बवेजा
विज्ञानं अध्यापक/संचारक
आपकी बात सही है पर जरा सोचिए, ऐसी स्थिति क्यों है? हममें से तमाम लोग पुलिस के साथ सहयोग करना चाहते हैं पर ज्यादातर लोग क्यों नहीं करते या कर पाते हैं यह गौर करने वाली बात है। व्यक्तिगत रूप से मुझे भी थोड़ा अनुभव है। इस बारे में लिखूंगा भी। अधिकांश पुलिस जन अपनी स्थितिओं की कई गुणा अधिक कीमत भी इसी समाज से वसूल करने में पीछे नहीं रहते। प्रमाण आपके आसपास बिखरे पड़े हैं, देखिए।
ReplyDeleteमीणा जी आपकी बात सत्य है। पुलिस वाले भी ईंसान है, उनकी भी अपनी परिवारिक जिंदगी है, तनाव है, वह भी अपेक्षा करते हैं आप से दो मिठे शब्दो की । लेकिन समस्या यह नही है। आम लोग क्यों नहीं जाना चाहते थाना ? पुछताछ के दौरन बर्बर क्यों हो जाते है पुलिस वाले । क्या मुल्क के कानून में कोई खामी है या हम नही तो कानून नही की मानसिकता ईसका कारण है ।
ReplyDeleteमदन कुमार तिवारी
ब्यूरो चीफ़ ,गया
बिहार रिपोर्टर
०९४३१२६७०२७। ०६३१२२२३२२३। समीर तकिया, गया -८२३००१.
आज पुलिस के रवैये के बारे मैं पढकर अच्छा लगा|
ReplyDeleteतारीफें करें आज कैसे हम उनकी करें लाजवाब जो “लिखाई”
ReplyDeleteअलफ़ाज़ भी अब मयस्सर नहीं हैं करें हम जो उनकी बड़ाई.
और अधिक लोग आपके इस अभियान के साथ जुड़ें यही शुभकामनाएं हैं. अश्विनी रॉय
वाह!! क्या बात कही है आपने....
ReplyDeleteआपने तो मेरा नजरिया ही बदल दिया पुलिस वालों के लिए.....
जितनी तारीफ़ की जाये उतनी कम है...बहुत खूब
आपकी लेखन शैली उत्कृष्ट एवं प्रभावी है।
ReplyDeleteश्रीमान जी , जय हिंद
ReplyDeleteआप का लेख सबको सिक्के के दुसरे पहलू पर गौर करने की बाट करता है.
सर ,मैंने अभी- अभी ब्लॉग लिखना शुरू किया है.
मुझे आप के मार्गदर्शन का इंतजार रहेगा.
--lucknavi.blogspot.कॉम
क्षितिज
वन्दे मातरम,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में आकर और आपके द्वारा लिखित पोस्ट पढ़कर आत्मीय प्रसन्नता हुई, मै आपका आभारी हूँ बहुत हे सही बात कही आपने बहुत अछा बताया आप ने. मे आप के बात से सहमत हू
आप ने नए ढंग से सोचने का रास्ता दिखाया.
ReplyDeleteVery good, acha laga thanks
ReplyDeletemujhe ye post padh ke kafi accha laga...soch pe fark bhi padha..!!
ReplyDelete6.5/10
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर बहुत ही ख़ुशी हुयी. आपने जो सवाल किये हैं वो सर्वथा नए हैं. सिक्के के दुसरे पक्ष के बारे में कोई बात नहीं करता.
बहुत सार्थक पोस्ट
जिंदाबाद
hmm, kafi had tak sehmat hu aapki baat se....
ReplyDeletebataur ek nagrik ham police ko kosne k siva aur karte kya hain.....true
aapka sochne ka treeka sakaratmak hai. aise logon ki samj men jaroorat hai. very good
ReplyDeletethanks
very good
ReplyDeletenyee thinking
police ke bare men doosra pehlu dikhaya hai aapne
Thanx
बहुत ही सही कहा है आपने पर कुछ पुलिस वाले होते ही ऐसे हैं जैसे ही खाकी में आते हैं उनका रूप ही बदल जाता है अभी कल की ही बात है हम अपनी बोलेरो गाड़ी से बरोटीवाला हिमाचल से करनाल हरयाना के लिए जा रहे थे तो जैसे ही हमारी गाड़ी अम्बाला क्रोस करके निकली तो पुलिस के एक नाके ने हमें हाथ दिया हमने गाड़ी सईड की और इतने में एक कोंस्टेबल आया और ड्राईवर को कहने लगा की गाड़ी के कागज़ दिखा तो ड्राईवर ने सारे सम्बंधित कागजात दिखाए फिर उसने लाईन्सेंस माँगा उसने वो भी दिखा दिया, इतने में वो कहने लगा नीचे उतर और साहब के पास आजा, वो ड्राईवर भी उतर गया और साथ ही साथ दूसरी तरफ से में भी उसके साथ उनके बड़े साहब के पास पहुंचा वो कड़क आवाज में पूछा कितने आदमी बैठे हैं गाड़ी में ड्राईवर ने कहा साहब आठ और एक में यानी कुल नौ , साहब कहने लगा कितने पास हैं गाड़ी में उसने कहा इतने ही पास हैं साहब जितने बिठाये हैं कहने लगा बेवकूफ बनाता है मेरा उसने कहा साहब इसमें बेवकूफ की कोण सी बात है कहने लगा तुने सीट बेल्ट क्यूँ नि लगा रखी थी उसने कहा साहब लगा राखी थी पर जब आपके पास आना था तो वो तो खोल के ही आना पडेगा पर वो कहाँ माने कहा मन्ने बेवकूफ ब्न्नावे तू बीस साल हो गए नोकरी कर्वे से, ये तो चालान हे तेरा हमने रक्वेस्ट भी की की साहब क्यूँ जान बूझ के कर रहे हो पर वो नि मन और उसने सीट बेल्ट का चालान कर ही दिया और कहा सिर्फ सौ रुपे का चालान करा मेने तेरे लिए इन्ना करूँ की दस दिना के अंदर अंदर अपनी आर सी अम्बाला पुलिस लाईन ते ले जावें आईके बस जा अब क्या मुंह देखे खड़े खड़े से...
ReplyDeleteबस इतना तानाशाह सारा मूड ही खराब हो गया तो फिर आप ही बताओ की कैसे हैं ये वर्दी वाले हमारे सेवक...
आदरणीय श्री संजय जी अर्थात् क्रान्तिकारी हिन्दुस्तानी देशभक्त जी,
ReplyDeleteआपकी उपरोक्त टिप्पणी का प्रतिउत्तर, मैं आपको ई-मैल के जरिये भेज चुका हूँ और इसी ब्लॉग पर f"एक साथ काम करना सफलता है!" शीर्षक से प्रकाशित भी कर चुका हूँ। कृपया पढने का कष्ट करें।
धन्यवाद।