गरीबी मिटाने के लिये
गरीबों को मिटाने की नीति!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
पिछले 10-15 वर्षों में सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है, जिसके लाभ हम सभी को मिल रहे हैं। धनाढ्य लोगों को इसका लाभ, गरीबों की तुलना में अधिक मिल रहा है। सूचना क्रान्ति के युग में मशीनीकरण भी तेजी से हुआ है। रोजाना देश में नयी-नयी और बडी-बडी कारें तथा मोटर साईकलें सडक पर आ रही हैं। इनका लाभ भी अमीरों को ही अधिक मिल रहा है। देश की प्रगति दर को दर्शाने वाले आंकडे भी अमीरों की प्रगति के ही आंकडे हैं। आज देश में आम आदमी दाल रोटी के लिये तरस रहा है, जबकि देश की सरकार प्रगतिपथ पर देश के तेजी से प्रगति करने के गीत गा रही है। कुल मिलाकर आज हर वस्तु अमीरों के लिये पैदा की जा रही है। भारत की अर्थव्यवस्था जो कभी समाजवाद को अपना मुख्य आधार माना करती थी, जिसके चलते देश के अन्तिम व्यक्ति तक राहत पहुंचाने का प्रयास होता था, वही अर्थव्यवस्था अब पूरी तरह से पूंजीवाद को समर्पित है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि हर तरह से पूंतीपतियों को समर्पित है। भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री इसी नीति से देश के आम व्यक्ति के उत्थान की कल्पना किये बैठे हैं। हो सकता है कि उनकी नीति आने वाले कुछ दशकों बाद, जब वे स्वयं इस देश में नहीं होंगे, कोई चमत्कार करे, लेकिन आज तो इस नीति के चलते आम व्यक्ति बुरी तरह से त्रस्त है। आम व्यक्ति चाय बनाने के लिये चीनी और अपने आपको जिन्दा रखने के लिये दाल रोटी तक की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। वर्तमान नीति कुछ दशकों में आम और विपन्न व्यक्ति को बेमौत मरने के लिये विवश कर देगी तब न तो गरीब रहेगा और न हीं किसी को गरीबी की बात करने की जरूरत होगी। लगता है कि सरकार गरीबी मिटाने के लिये गरीबों को मिटाने की नीति पर काम कर रही है।
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
ReplyDeleteमैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.