लादेन, अमरीका और भारत का ढुलमुल रवैया?
(आतंकवाद पर अमरीकी नीति और भ्रष्टाचार पर चीनी नीति पर विचार किया जाना चाहिए !)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
अमरीका ने आतंकवादी लादेन को, अतंकवाद के घर पाकिस्तान में घुसकर मार गिराया| यह खबर आज (02 मई, 2011) की सबसे बड़ी खबर है| भारत में इस खबर के बाद केन्द्र सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है और न्यूज चैनलों पर लोगों से शान्ति बनाये रखने की अपील की जा रही है|
जबकि इसके ठीक विपरीत अमरीका में यह आलेख लिखे जाने तक (अमरीका के रात्री ढाई बजे तक) लादेन की हत्या का जश्न मनाया जा रहा है| वहॉं का राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से घोषणा कर रहा है कि उन्होंने जो कहा था, वह कर दिखाया| उन्होंने आतंकवाद के पर्याय लादेन को मार गिराया और साथ ही यह सन्देश भी दिया है कि जो कोई भी अमरीका के खिलाफ आँख उठाने या आँख दिखाने की कौशिश करेगा, उसका हाल सद्दाम और लादेन जैसा ही होगा|
हालांकि लादेन और सद्दाम की कोई तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन अमरीका ने दोनों को ही पकड़ा और उड़ा दिया| सारे संसार में से किसी ने भी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की, कि सद्दाम को न्याय पाने के लिये राष्ट्रपति पद के अनुकूल निष्पक्ष प्रक्रिया का लाभ मिलना चाहिये था| अमरीका ने सद्दाम पर मुकदमा चलाने का भी मात्र नाटक ही किया था| अन्यथा अमरीका चाहता तो घटना स्थल पर भी उसे मार सकता था|
लादेन के मामले में अमरीका ने किसी की परवाह नहीं की और टीवी पर दिखाये जा रहे लादेन के चित्र से साफ दिख रहा है कि बहुत नजदीकी से लादेन की आँखों और ललाट पर गोली मारी गयी हैं| ऐसे लोगों से निपटने का सम्भवत: यही एक सही तरीका है| इसके विपरीत भारत अलर्ट जारी करके न जाने क्या दिखाना चाहता है|
भारतीय शासकों और हक्मरानों को अमरीका, चीन आदि देशों से आतंकवाद और भ्रष्टाचार के मामले में कुछ सबक लेने की जरूरत है| चाहे आतंकवादी कोई भी हो, उसे पकड़े जाने के बाद सच्चाई और षड़यन्त्र उगलवाये जावें और मुकदमा चलाकर वर्षों मेहननवाजी करने के बजाय, उनको ऊपर वाले की अदालत में भेज दिया जाये तो आतंकवादियों तथा उसे पनपाने वालों को सख्त सन्देश जायेगा|
परन्तु हमारे यहॉं तो कारगिल में सेना द्वारा घेर लिये गये पाकिस्तानी आक्रमणकारियों तक को भी सुरक्षित पाकिस्तान लौट जाने के लिये समय दिया गया| दिये गये समय में अपने साजो-सामान और भारतीयों को मारने के लिये लाये गये हथियारों सहित वापस नहीं लौट पाने पर, भारत की सरकार द्वारा फिर से समय बढाया गया और दुश्मनों को आराम से पाकिस्तान लौट जाने दिया गया| इसके बाद तत्कालीन भारत सरकार द्वारा भारतीस सेना के हजारों सिपाहियों की बलि देने के बाद, अपने इस शर्मनाक निर्णय को भी ‘‘कारगिल विजय’’ का नाम दिया गया|
चाहे संसद पर हमला करने वाले हों या मुम्बई के ताज पर हमला करने वाले| चाहे अजमेर में ब्लॉट करने वाले हों या जयपुर में बम धमाकों में बेकसूरों को मारने वाले हों| आतंकी चाहे गौरे हों या काले हों| इस्लाम को मानने वाले हों या हिन्दुत्व के अनुयाई| उनमें किसी प्रकार का भेद करने के बजाय, सभी के लिये एक ही रास्ता अख्तियार करना होगा| तब ही हम आतंकवाद पर सख्त सन्देश दे पायेंगे| बेशक आतंकी अफजल गुरू हो या असीमानन्द ये सभी नर पिशाच भारत के ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के दुश्मन हैं| जिन्हें जिन्दा रहने का कोई हक नहीं है|
अमरीका पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मार सकता है तो हम दाऊद को क्यों नहीं निपटा सकते? दाऊद तो पाकिस्तान में बैठा है, लेकिन कसाबा, असीमानन्द, अफजल गुरू, प्रज्ञासिंह जैसों को तो हमने ही मेहमान बनाकर पाल रखा है| क्या हम फिर से किसी विमान अपहरण का इन्तजार कर रहे हैं, जब भारत का कोई मन्त्री विमान वापस प्राप्त करने के बदले में इन आतंकियों को छोड़ने का सौदा करके भारत का मान बढायेगा?
अब समय आ गया है, जबकि हमें अमरीका से सबक लेना चाहिये और कम से आतंकवाद के मामले में अमरीका की नीति और भ्रष्टाचार के मामले में चीन की नीति पर विचार किया जावे|
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