tag:blogger.com,1999:blog-7053492822811686484.post6392848246344226405..comments2023-06-21T14:20:12.120+05:30Comments on BAAS VOICE-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान की आवाज़: रूपम पाठक एक चेतावनी है!डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7053492822811686484.post-39606759793752159622011-01-23T13:10:29.925+05:302011-01-23T13:10:29.925+05:30श्री कौशलेन्द्र जी, टिप्पणी देने के लिये आपका आभार...श्री कौशलेन्द्र जी, टिप्पणी देने के लिये आपका आभार एवं धन्यवाद। वर्तमान भारतीय समाज की स्थिति तो आप जानते ही होंगे कि यहाँ पर चाहे मानव अधिकारवादी हों या मानव अधिकारों के अतिक्रमणकारी हर कोई अपने कार्य को लाभ-हानि के गणित से जो‹डकर देखता है। रूपम पाठक की पिटाई का विरोध करने से वाहवाही नहीं मिलती तो मानवाधिकावादी चुप हैं। अब सर्वजनहिताय और सर्वजनसुखाय की बात कहने और करने वाले कितने बचे हैं?<br />डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'यदि बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'/ Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'-सम्पादक-PRESSPALIKA, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान, Mob : 98285-02666https://www.blogger.com/profile/01854980253449056926noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7053492822811686484.post-37324883721522078162011-01-23T00:14:39.533+05:302011-01-23T00:14:39.533+05:30मीणा जी ! निस्संदेह रूपं पाठक हमारी थोथी व्यवस्था,...मीणा जी ! निस्संदेह रूपं पाठक हमारी थोथी व्यवस्था, राजनेताओं की निरंकुशता, प्रशासन की नपुंसकता और सामाजिक न्याय की विफलता का परिणाम है ....उन्होंने ज़ो किया वह देश के थोथे क़ानून की दृष्टि में गलत है ...पर क़ानून के रक्षकों नें ही विवश किया एक माँ को अपनी बेटी की रक्षा केलिए ऐसा कदम उठाने के लिए. इसलिए एक माँ की भूमिका में वे स्तुत्य हैं और वे मर्द घोर निंदा के पात्र हैं जिन्होनें सब कुछ जानते हुए भी उनकी मरते दम तक पिटाई की. क़ानून की दृष्टि में तो यह पिटाई भी गैर कानूनी थी. यानी हमारे व्यवहार में हर व्यक्ति के लिए क़ानून की अलग -अलग व्याख्याएं हैं...अलग-अलग क्रियान्वयन हैं. विनायक सेन के हिमायती मानवाधिकारवादी कहाँ चले गए ? एक विवश स्त्री के साथ हुए अमानवीय अत्याचार में उन्हें कोई मानवाधिकार हनन दिखाई नहीं देता ? शायद उनके यहाँ भी सापेक्षता के सिद्धांत लागू होते हैं. जय हो मानवाधिकारवादियों की !बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.com